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कुछ दिन पहले की घटना है एक गांव मे दो चौधरी रहते थे। दोनों के छोटे छोटे पोते थे। लगभग एक वर्ष पूर्व उनके बच्चों को बुखार हुआ। एक चौधरी अपने पोते को लेकर फैजाबाद गये और बच्चे को एक स्पेस्लिस्ट डाक्टर को दिखाया । डाक्टर ने उन्हे कुछ टेस्ट कराकर लाने को कहा। चौधरी साहब पैथालजी मे जाकर वह टेस्ट कराकर लाये और डाक्टर साहब को दिखाया। डाक्टर साहब ने रिर्पोट देखी और कहा घबराने की कोई बात नही है। कुछ दवायें लिख रहे है उन्हे खरीदकर एक सप्ताह खिला दें अगर फिर भी बुखार बना रहता है तो दिखा लेगें नही तो दिखाने की कोई आवश्यकता नही है।
दूसरे चौधरी साहब गांव के एक झोला छाप डाक्टर के पास अपने पोते को ले गये। झोलाछाप डाक्टर ने देखा कि बच्चे को बुखार है उसने पांच रुपये की क्रोसिन दे दी। दोनो चौधरियों ने अपने बच्चों को दवा खिलाई दोनों के बच्चे ठीक हो गये। एक दिन शायं दोनो चौधरी अलाव के किनारे बैठे थे एक चौधरी ने कहा कि उनके पोते की तवियत खराब हो गई थी वे फैजाबाद डाक्टर के पास ले गये। डाक्टर साहब ने दवाई तो लिखी डेढ सौ रुपये की और टेस्ट कराया दो सौ रुपये का। उन्होने कहा कि जब डेढ सौ रुपये की ही दवा लिखनी थी तो दो सौ रुपये का टेस्ट कराने की क्या जरुरत थी। तो दूसरे चौधरी ने कहा कि उनके पोते को भी बुखार था। वे तो डा0 वर्मा के यहां गये उन्होने पांच रुपये की दवा दी और उनके पोते का बुखार उतर गया। इस पर पहले चौधरी साहब बडे दुखी हुए और सोचने लगे कि उनसे गलती हो गयी जबकि दूसरे चौधरी साहब बडे खुश थे। कुछ दिन बाद दूसरे चौधरी साहब के पोते को फिर बुखार हो गया वे फिर उन्ही डाक्टर साहब के पास गये उन्होने फिर क्रोसिन दी और बच्चे का बुखार उतर गया। इसके बाद बुखार जल्दी जल्दी आने लगा। कई वार दवा देने के बाद भी जब बुखार नही उतरा तो उस झोलाछाप डाक्टर ने कहा कि आप बच्चे को किसी अच्छे डाक्टर को दिखायें अब उनके वश का नही है। दूसरे चौध्री साहब थकहार कर उन्ही डाक्टर साहब के पास गये जिनके पहले वाले चौधरी साहब गये थे। डाक्टर साहब ने बच्चे को देखा बच्चा सूखकर कांटा हो गया था। डाक्टर साहब को शंका हुई उन्होने कुछ टेस्ट कराने को कहा चौधरी साहब टेस्ट कराकर पहुचे। डाक्टर साहब ने रिर्पोट देखकर कह कि वह बच्चे को घर ले जायं खूब खिलायें पिलायें और खुश रखें। इस पर चौधरी साहब को कुछ शंका हुई उन्होने पूछा कि कुछ गडबड तो नही है। डाक्टर साहब ने कहा कि कुछ नही बहुत गडबड है बच्चे को कैंसर हो गया है और काफी एडवांस स्टेज मे है अगर छा माह पूर्व लाये होते तो शायद ठीक हो जाता। अब तो बचाना मुश्किल है। चौधरी साहब रोते बिलखते अपने घर पहुचे और उस दिन को कोस रहे थे जब उन्होने पहली बार बच्चे को डा0 वर्मा को दिखाया था। चौधरी साहब पछताते रहे कि काश उनहोने भी अपने बच्चे को पहले ही उन डाक्टर साहब को दिखाया होता। अब पछताये होत का जब चिडियां चुग गई खेत।
दोस्तो यह कोई सही घटना नही है यह एक काल्पनिक घटना है। इस काल्पनिक घटना के माध्यम से जो बात मै कहने जा रहा हू उस पर गौर करियेगा और बताईयेगा कि क्या मैं गलत कह रहा हूं। भारत वर्ष की जनसंख्या लगभग 1 अरब चौदह करोड हो गयी है अर्जुनसेन गुप्ता समिति की रिर्पोट के अनुसार उनमे 77 प्रतशित लगभग 84 करोड लोग मात्र 20 रुपये प्रतिदिन दिहाडी पर जीवन विताने को मजबूर हैं। 22 करोड लोग भुखमरी के शिकार हैं। भुखमरी मे भारत का स्थान विश्व मे 94 वां है देश के आधे बच्चे कम वजन के है और संसार का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारत मे है। भारत मे शिशु मृत्यु दर 53 शिशु प्रति हजार है। विगत 10 वर्षों मे गरीबी के नीचे के लोगों की संख्या मे 11 करोड की बृद्धि हुई है। जबिक देश के एक तिहाई धन पर 35 घरानों का कब्जा है।
जब हम लोग गांव मे जाते है तो लोग हमसे लाल कार्ड सफेद कार्ड पेंशन और इन्दिरा आवास मांगते हैं। हम उनके भोजन रुपी बुखार को लाल या सफेद कार्ड रुपी क्रोसिन देकर उतार देते हैं उनके घर के बुखार को इन्दिरा आवास देकर और पैसे की जरुरत रूपी बुखार पेंशन रुपी क्रोसिन देकर उतार देते हैं क्या हम लोग झोलाछाप डाक्टर की तरह व्यवहार नही कर रहे हैं ? क्या पेंशन लाल या सफेद कार्ड या इन्दिरा आवास इस मर्ज की दवा है ? क्या हम उनकी सही बीमारी का पता लगा पा रहे हैं ? शायद नही। उनकी वास्तविक वीमारी गरीबी है जिसका स्थाई हल ढूढा जाना आवश्यक है। कही यह लाल या सफेद कार्ड इन्दिरा आवास और पेंशन रुपी क्रोसिन गरीबी रूपी वीमारी को कैसर मे न तब्दील कर दे। हमे इस पर गम्भीरता से विचार करना होगा।
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