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विगत दिनों नक्सलवाद को लेकर अखबारों मे काफी चर्चा रही। विभिन्न अखबार संपादकीय लिख रहे है। कुछ अखबारो मे समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा नक्सलवाद के पछ मे या विरोध मे लेख लिखे गये हैं। नक्सलवाद पर प्रभावी नियंत्रण के लिये उसके कारणों पर विचार किया जाना आवश्यक है।
यदि हम नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों को देखें तो पायेगें कि नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र मे दो प्रकार के क्षेत्र आते हैं। एक क्षेत्र वह जहां जमीनदारी प्रथा लागू थी और आजादी के बाद जहां भूमि सुधार कार्यक्रम प्रभावी ढंग से लागू नही हो सका परिणाम स्वरुप भूमि के स्वामित्व मे असमानता व्याप्त रही। एक ओर जहां जमीनदारों के पास वडी-वडी जोतें है वही समाज का एक बडा वर्ग भूमिहीन है। यह भूमिहीन वर्ग शदियों से अभिजात्य वर्ग के लोगों के शोषण का शिकार हुआ। देश की स्वतंत्रता के वाद इस वर्ग मे असन्तोष का भाव विकसित हुआ परिणाम स्वरुप समाज मे नक्सलवाद का जन्म हुआ। इस असन्तोष के पीछे आधुनिक संचारमाध्यम भी जिम्मेदार हैं। आधुनिक संचार माध्यम जैसे दूरदर्शन ने आम लोगों को देश दुनिया के विभिन्न स्तरों के विकास से परिचित कराया। परणिम स्वरुप समाज का वह वर्ग जो वर्षों से अपनी गरीबी और बदहाली को अपनी नियत मान बैठा था उसे जमीनदारों के शोषण का परिणाम मानने लगा। समाज के कुछ लोगों ने समाज मे व्याप्त इस असन्तोष को भडकाया और जमीनदारों के विरुद्ध आन्दोलन शुरु कर दिया जो बाद मे नक्सलवाद मे तब्दील हो गया।
दूसरा क्षेत्र वह है जो वनों से आक्षादित है वनों से आक्षादित यह क्षेत्र खनिज पदार्थो से परिपूर्ण है। खनिज के रुप मे यहां कोयला लोहा मैगनीज अभ्रक और अन्य खनिज उपलब्ध हैं। यहां के मूल निवासी अधिकांशत: आदिवासी है । आदिवासी आदिकाल से वन तथा वनोत्पाद पर निर्भर रहे हैं। समय के साथ इन क्षेत्रों मे आर्थिक गतिबिधियां शुरु हुई जिस कारण इनके रिहाईश मे परिवर्तन आना शुरु हुआ आर्थिक गतिविधियां बढने एवं विकास होने से इन आदिवासियो का शेष दुनिया से परिचय हुआ और शहरी रहन सहन की जानकारी हुई।जिससे इन लोगों मे विकास की इच्छा जागत हुई। खान मलिको द्वारा कोयले एवं अन्य प्रकार की खानों मे काम करने वाले आदिवासी मजदूरों का शोषण किया गया। उनसे लम्बे लम्बे समय तक कार्य कराया गया तथा मजदूरी भी कम दी गई। शहरी लोगों द्वारा भोली भाली आदिवासी महिलाओं का भी शोषण किया गया। इन कारणों ने आदिवासियों मे असंतोष पैदा किया और इस असन्तोष का लोगों ने फायदा उठाकर नक्सवाद का प्रतिपादन कर हिंसा प्रारम्भ कर दिया ।
प्रारम्भ मे यह अभियान एक पवित्र उद्देश्य को लेकर शुरु किया गया था लेकिन समय के साथ इसका स्वरुप बदलता चला गया। आज यह अभियान अपने मूल उद्देश्य भटक गया है। आज इस अभियान मे अपराधियों का प्रवेश हो गया है जो लोगों से बलात धन उगाही करते हैं।
फिर भी नक्सलवाद जो माओवाद से प्रेरित है का एक बैचारिक आधार है। इससे लडने के लिये हमे हसके तंत्र एवं विचार दोनो पर वार करना होगा तभी जाकर हम इसे जड से समाप्त कर सकते है केवल नक्सलियों को मारकर इसका खात्मा नही किया जा सकता है।
इसके लिये हम एक कहानी सुनाते है किसी गांव मे एक किसान रहता था। उसने अपने खेत मे अरहर बो रखी थी। अरहर की फसल काफी अच्छी थी। एक दिन किसान ने देखा कि अरहर के कुछ पेड मुरझा रहे है किसान ने सोचा शायद खाद या पानी की कमी से पौधे मुरझा रहे हैं। किसान ने खेत मे पानी लगाया और खाद भी डाली लेकिन पेड फिर भी मुरझाते रहे। कुछ दिन बाद उनमे से कुछ पेड सूख गये। जब सिचाई और खाद डालने के बाद भी अरहर के पेड सूखते रहे तो किसान थक हार कर उनमे से कुछ पेड उखाडे और उनको लेकर क़षि विश्वविद्यालय गया। वैज्ञानिको ने उसकी जांच की जाच मे पाया कि वे पेड उकठा रोग से ग्रस्त है। वैज्ञानिक ने बताया कि उकठा रोग एक फंगस फफूदी के कारण होता है जो भूमि मे पनपता है जब भूमि मे नमी और खाद अधिक होती है तो यह फफूदी तेजी से फैलती है। बीमारी ग्रस्त खेत की कम से कम जुताई गुडाई करनी चाहिए ; जुताई गुडाई से फफूदी खेत के अन्य भागों मे फैल जाती है। वैज्ञानिक ने किसान को सलाह दी कि वह खेत मे जितने भी पेड सूख रहे हैं उन्हे उखाड कर जला दे तथा खेत मे फफूदीनाशक डालकर भूमि को कम से कम डिस्टर्ब करे और भूमि मे खाद एवं पानी न लगाये । खाद और पानी डालने से फफूदी का तेजी से विकास होगा और फसल को ज्यादा नुकसान होगा। किसान ने ऐसा ही किया ऐसे सभी पेड जो सूख रहे थे उनको उखाडकर जला दिया तथा खेत में फफूदीनाशक डालकर खेत को छोड दिया कुछ दिन वाद पेडों का सूखना बन्द हो गया और किसान की फसल बच गयी।
उक्त घटना हमे यह सीख देती है कि केवल पेड उखाडने मात्र से फसल को नही बचाया जा सकता था। फफूदी पर प्रभावी नियंत्रण के लिये फफूदीनाशक का प्रयोग भी आवश्यक था। ठीक उसी प्रकार केवल अपराधियों को मारकर किसी समस्या विशेषकर नक्सलवाद का अन्त नही किया जा सकता है क्योकि नक्सवाद का एक वैचारिक आधार है और उस वैचारिक फफूदी को फफूदीनाशक रुपी विचारों के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है। कुछ लोगों का विचार है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों मे आर्थिक गतिविधियां तेज करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है यह सही नही है क्योंकि विकास योजनाओं के लिये खर्च किये जाने वाले धन का एक हिस्सा अवैध तरीके से नक्सलियों के पास चला जाता है जो उसका प्रयोग कैडर तैयार करने एवं हथियार खरीदने मे करते है। मेरा मानना है कि न केवल नक्सलियों के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है बल्कि उनके विचारों की काट प्रस्तुत करनी होगी और जब तक नक्सलियों पर प्रभावी अंकुश नही हो जाता है तब तक इन क्षेत्रों मे कोई महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि शुरु नही की जानी चाहिए।
इस प्रकार नक्सलियों पर प्रभावी नियंत्रण के लिये उनके तंत्र और विचार दोनों पर हमला किये जाने की आवश्यकता है।
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