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तीन करोड वाद वनाम न्यायपालिका

यूपी उदय मिशन
यूपी उदय मिशन
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तीन अप्रैल को दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला मे एक खबर छपी जजों की कमी से मुकदमों का अम्‍बार । खबर काफी ज्ञानवर्द्धक और विचारणीय थी। खबर मे बताया गया था कि विभिन्‍न न्‍यायालयों मे 3 करोड से अधिक मुकदमे लम्बित हैं केवल विभिन्‍न हाईकोर्ट मे ही 39 लाख मुकदमे लम्बित है। खबर मे विभिन्‍न न्‍यायालयों मे न्‍यायाधीशों की कमी के वारे मे लिखा गया था और अन्‍त मे लिखा गया था कि यदि इन मुकदमो का निपटारा ये अदालते करे तो इनके निपटारे मे न्‍यायालयों को 320 वर्ष लग जायेगे। अब प्रश्‍न उठता है कि क्‍या किया जाय कि इन मुकदमों का निस्‍तारण त्‍वरित गति से हो और न्‍यायालयों मे अनायास मुकदमें दायर न किये जायं।संविधान की एक धारा है 226 जिसके तहत कोई भी व्‍यक्ति किसी मामले पर उच्‍च न्‍यायालय मे वाद दायर कर सकता है। यह वाद चाहे वोर्ड परीक्षा की किसी कापी की स्‍क्रूटनी कराने से सम्‍बन्धित हो या नीचे की अदालतों मे लम्बित मुकदमों को एक्‍सपेडाइट कराने या ग्राम प्रधान की जांच कराने से सम्‍बन्धित हों हर काम के लिये हाई कोर्ट का दरवाजा खुला है। प्राय: देखा जाता है कि उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष ऐसे वाद विचार के लिये आ जाते है जिनमे माननीय न्‍यायाधीश भी झुझला जाते है। ऐसे महत्‍वहीन मुकदमों के कारण गम्भीर मामलों पर विचार के लिये न्‍यायालयों के पास समय ही नही बचता और गम्‍भीर प्रकरण गौण हो जाते है।

अब प्रश्‍न उठता है कि आखिर क्‍या कारण है कि वर्ष प्रति वर्ष मुकदमों की संख्‍या मे बृद्धि होती जा रही है और मुकदमों का निस्तारण त्‍वरित गति से नही हो पा रहा है। इस पर गौर करे तो आप पायेगे कि न्‍यायालय की प्रक्रिया इतनी पेंचीदी है कि चाहकर भी न्‍यायाधीश मुकदमे का त्‍वरित निस्तारण नही कर पाते। जब किसी वाद पर माननीय न्‍यायाधीश निर्णय की स्थिति मे आते है तो पक्ष या विपक्ष का वकील कोई न कोई पेच लगा कर उसे उलझा देता है। वकील का हित मुकदमे के निस्तारण मे नही है वल्कि उसे उलझाये रखने मे है इसलिये वह कभी भी नही चाहेगा कि कोई वाद निस्‍तारित हो उसे तो दिनों के हिसाब से पैसे मिलते है न कि मुकदमे के हिसाब से। इसी प्रकार यदि कोई जज तेजी से वादों का निस्‍तारण करने लगता है तो वार एशोसिएशन के लोग कोई न कोई बहाना बना कर न्‍यायालय का वहिष्‍कार कर देते है। न्‍यायालयों मे लम्बित कई प्रकरणों मे वादी को यह मालूम ही नही होता कि वह मुकदमा किस बात का लड रहा है। मेरे एक परिचित है जो फैजावाद मे जज तैनात है उन्‍होने बताया कि एक वार उनके सामने लगभग 35 वर्ष पुराना एक वाद आया जिसमे इस आशय का मुकदमा लडा जा रहा था कि वादी की माली हालत ऐसी नही है कि वह कोर्ट फीस जमा कर सके अत: उसकी कोर्ट फीस माफ कर दी जाय। गौर करने वाली वात यह है कि वादी कई वार न्‍यायालय से हुए जुर्माने के रूप मे हजारों रूपये अदालत मे जमा करा चुका है लेकिन 12 रूपयें कोर्ट फीस के लिये 35 वर्ष वाद भी उसका मुकदमा अभी न्यायालय मे दायर नही हो सका है। शायद वादी को इस तथ्‍य की जानकारी ही नही है कि वह किस बात का मुकदमा लड रहा है क्‍योंकि यदि उसे मालूम हो जाता तो शायद वह मुकदमा कब का खत्‍म हो चुका होता। इसी प्रकार भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 182 है जिसमे प्राविधान है कि यदि किसी के द्वारा फर्जी वाद दायर किया जाता है तो उसके  विरूद्ध मुकदमा चलाया जायेगा। थानों मे प्रतिदिन हजारों फर्जी मुकदमे पुजीकृत किये जाते है लेकिन किसी भी मामले मे 182 मे वाद नही चलाया जाता है जिस कारण फर्जी वादों की संख्‍या मे निरन्‍तर बृद्धि हो रही है।

अब प्रश्‍न उठता है कि इसका समाधान क्‍या है। इसके समाधान के लिये सम्‍यक विचार किये जाने की जरूरत है। न्‍यायालय प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए। न्‍यायाधीशों कों वादों के निस्‍तारण मे और स्‍वायत्‍ता दी जानी चाहिए ऐसे वाद जो अल्‍प महत्‍व के है और जिसका त्‍वरित निसतारण किया जा सकता है उनके निस्‍तारण के लियें ऐसे वकील जो 15 वीस वर्षों से विभिन्‍न न्‍यायालयों मे वकालत कर रहे है उनकी अध्‍यक्षता मे विशेष न्‍यायालय गठित कर निस्‍तारित करवाया जाना चाहिए। कई वाद जिनका निस्तारण सुलह सफाई के आधार पर किया जा सकता है को स्‍वयं सेवी संगठनों के माध्‍यम से सुलह सफाई के आधार पर निस्‍तारित करवाया जाना चाहिये इसके लिये उन्हे कुछ पा‍रिश्रमिक भी दिया जाना चाहिये। न्‍यायालयों मे मुकदमों के निस्तारण मे जजों की रूचि बनाये रखने के लिये उन्हे भी प्रति वाद कुछ प्रोत्‍साहन राशि दिया जाना चाहिए। लोगों मे मुकदमेवाजी से होने वाली हानियों के वारे मे जागरूक किया जाना चाहिये क्‍योकि यह एक प्रकार की ऐसी वीमारी है जो जिस परिवार को लग जाती है उसे समाप्‍त करके छोडती है। आज अगर मान लिया जाय कि केवल 5 करोड परिवार ही मुकदमेवाजी मे संलिप्‍त है तब भी लगभग 25 करोड जनसंख्‍या इससे प्रभावित है जो किसी भी महामारी से पीडित होने वालों की संख्‍या से कही अधिक है। अत: सम्‍पूर्ण समाज एवं तंत्र को इसके सिरे से खात्‍मे का प्रयास करना चाहिये तब जाकर एक सुखी और समृद्ध समाज का निर्माण हो सकेगा।

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