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दिनांक 7 अप्रैल 2010 दिन बुद्धवार समय प्रात: सात बजे जब मै सुबह घूमकर घर लौटी अखवार पर नजर डाली मुख्य खबर सबसे बडा नक्सली हमला 73 सी आर पी एफ जवान शहीद । सायं तक गृह मत्री का बयान नक्सली अभियान मे सेना की मदद नही ली जायेगी। फिर आया बयान लेकिन वायु सेना और हवाई जहाजों के प्रयोग से इन्कार नही। यह सब क्या हो रहा है क्या माननीय गृह मत्री जी बतायेगें कि 1965 और 1971 के युद्ध के किस मोर्चे पर सेना के 73 जवान एक साथ शहीद हुए थे। शायद माननीय मत्रीजी ढूढ नही पायेगे। हम लोग खुले युद्ध मे मोर्चे पर एक साथ एक दर्जन जवानों की कुर्बानी के लिये भी तैयार नही और देश के भीतर एक साथ 73 जवान शहीद हो जाते है और हमारे गृह मंत्रीजी बयान देते है सेना का प्रयोग नही करेगे वायु सेना के हेलीकाप्टरों का प्रयोग नही करेगे। तो प्रश्न उठता है क्या करेगे आप। अनुसूचित जनजाति क्षेत्र हैं इसलिये जवानों के हाथ बांध दो और छोड दो नक्सलियों के सामने मरने के लिये। नक्सली कहते है कि वे भारत सरकार से युद्धरत है और सरकार उसे युद्ध मानने के लिये तैयार नही है। 73 जवान एक साथ शहीद हो जाते है और गृह मंत्री जी संयम से काम लेने की अपील करते है। आखिर संयम की भी कोई सीमा है। युद्ध का एक ही सिद्धान्त होता है कि इसका कोई सिद्धान्त नही होता है जो सेना सिद्धान्तों के आधार पर युद्ध लडती है कभी सफल नही होती है युद्ध हमेशा जीतने के लिये लडा जाता है। कहा गया है प्यार और जंग मे सब जायज है। माननीय मत्रीजी सेना को आदेश दे कि वे इन भेडियों को नेस्नाबूद कर दे जब तक इन्हे एक सिपाही के लिये 10 नक्सली की जान नही देनी पडेगी ये नक्सली सुधरने वाले नही है। हेलीकाप्टर गनसिप नेपान बम र्मोटार्र तोप जिसकी जरूरत हो प्रयोग करें। एक जवान के बदले 10 नक्सली यही सूत्र इन्हे नियंत्रित कर पायेगा। अब पानी सर से उपर जा चुका है। यह एक युद्ध है जिसमे सब जायज है। कमान सेना को सौपकर आराम से बैठे वे सेना के लोग वैसे ही सबको ठीक कर देगें। और अगर हम आप अपना दिमाग लगायेगे तो अभी और न जाने कितने जवान शहीद होगें। आखिर अन्त मे आपको वही करना पडेगा जो आज देश कह रहा है। जनता की सुने और न्याय करें लोग आपकी ओर आशा भरी निगाह से देख रहे है।
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