Menu
blogid : 460 postid : 86

रावण एक विश्लेषण

यूपी उदय मिशन
यूपी उदय मिशन
  • 48 Posts
  • 246 Comments

दिनांक 8-5-2010 को दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला मे चन्द्र मोहन शर्मा का लेख दशानन का मंदिर के शीर्षक से एक लेख छपा लेख मे रावण के प्रति समाज मे फैले पूर्वाग्रह पर सार्थक विचार व्‍यक्‍त किया गया था। उक्त लेख ने मुझे भी अपने विचार व्‍यक्‍त करने का साहस प्रदान किया। इस सम्बन्ध मे मै कलयुगी और सतयुगी रावण की तुलना करके बताना चाहता हूं कि सतयुग मे रावण केवल एक था;लेकिन आज तो गांव गांव रावण पैदा हो गये है। राम और रावण के वारे मे जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार राम और रावण के कथा की शुरूआत उस समय से होती है जब रावण की बहन सूपनखा जंगल मे घूमते घूमते उस स्थान पर पहुचती है जहां श्री राम और लक्ष्मण सीताजी के साथ कुटी बना कर रह रहे थे। राम और लक्ष्मण राज कुमार थे स्वाभाविक था दोनों सुन्दर थे जिन्हे देखकर किसी का भी मन मोहित हो सकता था और ऐसा ही हुआ। सूपनखा राम चन्द्र जी पर मोहित हो गई और उसने अपने मन की बात को राम चन्द्र जी के समक्ष रखा जैसा होना था राम चन्द्र जी विवाहित थे उन्होने मना कर दिया लेकिन उन्हो्ने सूपनखा को लक्ष्मण के पास क्यों भेजा यह बात समक्ष मे नही आई जबकि राम चन्द्रजी को मालूम था कि लक्ष्मण जी भी विवाहित है। खैर जो होना था हुआ। लक्ष्मण जी के इन्कार करने पर प्यार मे निराश सूपनखा लक्ष्मण के विरूद्ध आक्रामक हो गई परिणाम स्वारूप लक्ष्मण जी को सूपनखा के नाक और कान काटने पडे। सूपनखा लंका के राजा की बहन थी जब एक राजा की बहन के साथ इस प्रकार का व्यवहार होगा तो यह अपेक्षा करना कि वह यह अपमान सहन कर जायेगा एक गलत सोच है। रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। कुछ लोग रावण के इस कार्यवाही का समर्थन नही करेगे; लेकिन सोचिये रावण को अपनी बहन के अपमान का बदला लेना था और सामने के शत्रु की शक्ति का आभास नही है ऐसी स्थिति मे सीधे युद्ध छेड देना कहां की बुद्धिमानी थी जबकि खर और दूषण जो रावण के महा प्रतापी भाई थे युद्ध मे मारे जा चुके थे। दूसरी बात रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिये सीता जी का अपहरण किया था आज तो लोग धन कमाने के लिये औरतो मासूम बच्चो और बुजुर्गों तक का अपहरण कर लेते है। रावण जिस समय सीताजी का अपहरण कर लंका ले जा रहा था उस समय सीता जी द्वारा विरोध किया गया जिसका रावण ने भी प्रतिरोध किया। यह भी कहा जाता है कि रावण ने बलपूर्वक सीता को पुष्पक विमान मे बैठाया। इसका मतलब रावण ने सीताजी को छुआ। अपहरण के बाद रावण सीता जी को अपने राज महल मे भी लाकर रख सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया। उसने सीता जी के सामने राज महल मे और अशोक वाटिका मे रहने का विकल्प दिया। सीताजी को उनकी इच्छा के अनुरूप अशोक वाटिका मे ठहराया। रावण शक्तिशाली था वह चाहता तो सीताजी को बलपूर्वक राजमहल मे रोक सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया। रावण के इस कार्यवाही को आप किस नजरिये से देखेगें।रावण के वारे मे यह भी कहा जाता है कि सीता जी के स्वायम्बर मे वह जनकपुर गया था लेकिन चूकि जिस धनुष का भंजन करना था वह भगवान शंकर था जो रावण के आराध्य थे इसलिये उसने धनुष उठाने का प्रयास नही किया और धनुष को केवल प्रणाम करके चला आया। जब हनुमान जी सीताजी की खोज मे लंका गये उस समय उन्होने न केवल रावण की अशोक वाटिका उजाड दी वल्कि रावण के पुत्र अक्षय कुमार का बध कर दिया इस कार्यवाही के वाद जब हनुमान जी को वांध कर रावण के दरवार मे लाया गया उस समय रावण ने हनुमान जी को प्राण दंण्ड न देकर केवल पूछ जलाने का आदेश दिया। आज यदि किसी राजा के पुत्र की कोई हत्या कर दे और उस राजा के पास न्यायाधीश के भी अधिकार प्राप्त हो तो क्या वह मात्र इतना स दंण्ड देकर उसे छोड देगा। जिस समय युद्ध होना अवसम्भावी हो गया था उस समय अंगद रावण के दरवार मे आते हैं और उनसे युद्ध खत्म कर राम चन्द्र् जी से समझौता करने का प्रस्ता्व रखते हैं। रावण ऐसा नही करता है लोग रावण के इस कृत्य की निंन्दा करते है। रावण एक वीर योद्धा था। हमेशा योद्धा की तरह जिया अब उसे मौत का भय दिखाकर कायर वन पीठ दि‍खाने की अपेक्षा करना कहां तक उचित है। रावण शक्तिमान था वह चाहता तो सीता जी के साथ अभद्र व्यवहार कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया। वह सीता जी को भय और प्रलोभन देकर अपनी पटरानी बनाने का प्रयास करता रहा। आज के परिवेश का आकलन करे तो क्या आप इस प्रकार का आचरण पायेगें। रावण का न तो सीता जी से कोई पारिवारिक संबन्ध था न ही को सामाजिक फिर भी रावण ने अपनी मर्यादा नही भूली। क्या आज ऐसा है। आज अपने सगे से सगे रिस्ते भी महफूज नही हैं। आये दिन कई ऐसी घटनाएं सुनने को मिल जाती हैं जो रावण के चरित्र से भी निकृष्ट हैं। रामायण मे मंदोदरी द्वार सीता के अपहरण के लिये रावण के चरित्र पर उगली उठायी जाती है जब कि शायद रावण अपहरण के पूर्व सीताजी को देखा भी नही था। वास्तव मे राम और रावण की लडाई दो संस्कृतियों की लडाई थी। राक्षस और देवता एक दूसरे को परास्त करने के लिये लडते रहे है। इस लडाई मे दैवीय संस्कृति को महिमामंडित किया गया और राक्षसी संस्कृति को खराब बताया गया इसी कारण रावण एक विद्वान और राजा के राज पद के अनुरूप कार्य करने के बाद भी उसे बुराई का प्रतीक माना गया और उसके सदगुणों को नकारा गया। आज समाज मे हर जगह रावण से भी बुरे लोग है जो अपनी बुराई नही देख पा रहे है और रावण रूपी बुराई के पीछे पडे रहते है। हमे सत्य को सत्य के रूप मे स्वीकार करना होगा। वास्तव मे रावण एक महान योद्धा महान पंडित ज्ञाता राजनेता और न्याय प्रिय शासक था। हमे उसकी सराहना करनी चाहिए न कि आलोचना।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh