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प्राय: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के आतंकी प्रशिक्षण कैंपों के चित्र छपते है। कैंपों मे 15- 16 वर्ष के बच्चे हाथों मे ए0के0-47 राइफले लिये जोश मे हाथ उपर किये नारा लगा रहे होते हैं। उनका इस प्रकार ब्रेनवास कर दिया गया है कि वे गलत और सही का अन्तर करने का विवेक खो चुके होते है। ये बच्चे यह नही जानते कि वे क्या कर रहे है और इसका परिणाम क्या होगा । वास्तव मे जब तक वे इसका एहसास करे परिस्थितियां उनके नियन्त्रण से बाहर जा चुकी होती है।
अजमल आमिर कसाब को फासी की सजा सुनाये जाने के वाद कई चैनलों पर इस विषय पर चर्चा हो रही थी कि क्या फांसी की सजा देकर आतंकवाद को रोका जा सकता है। जहां निकम जैसे वकील आतंकवादियों को सजा दिलाये जाने पक्ष मे थे वही कई वकीलो का कहना था कि वह व्यक्ति जो जान देने के उददेश्य से ही यहां आया था उसे फासी की सजा दिलाकर नही सुधारा जा सकता है क्योंकि उसे मौत का भय नही है। लेकिन किसी ने इस तथ्य पर गौर नही किया कि जब कसाब को फासी की सजा सुनाई जानी थी तो उसे भी मौत का भय सता रहा था।वह जेल मे जेल के कर्मचारियों से माफी के बारे मे पूछ रहा था। वास्तव मे जब तक व्यक्ति पर जुनून सवार रहता है वह गलत और सही मे फर्क नही कर पाता; लेकिन जब उसे वास्तविकता का एहसास होता है तब वह पछताता है। अजमल आमिर कसाब के साथ ऐसा ही हो रहा है। वह आज अपने किये पर पश्चाताप कर रहा है। आज उसे मौत का भय सता रहा है। जैसा कि कहा जाता है आदमी जोश मे होश खो बैठता है।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कैंपों मे बच्चों पर मजहबी जुनून इस कदर तारी कर दिया जाता है कि वे मरने मारने के लिये तैयार रहते है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने एक ऐसा तंत्र विकसित कर लिया है जहां लोगों को मजहब के अलावा कुछ सिखाया ही नही जाता है। बच्चे बचपन से ही धर्म सरीयत कुरान जन्नत और परलौकिक शक्तियों के इतने वशीभूत हो जाते है कि उनमे तर्क और विज्ञान के लिये कोई स्थान ही नही बचता। वास्तव मे ये बच्चे बडे कुशाग्र बुद्धि के होते है इनमे वह सब करने की क्षमता होती है जो यूरोप और एशिया के लोग नही कर सकते है। वास्तव मे ओसामा विन लादेन को अमेरिका जैसी महाशक्ति अगर दशियों साल से ढूढ रही है तो इसे हम क्या कहेगे अमेरिकी खुफिया तंत्र की विफलता या ओसामा विन लादेन की सफलता। दोनो ही स्थितियों मे ओसामा अमेरिकी खुफिया ऐजेन्सियों से ज्यादा चालाक है। दोनों देश अपने नौनिहालों को जिस तरह दूसरे देशों मे भेज कर मरवा रहे है उससे अफगानिस्तान या पाकिस्तान को क्या मिलना है। यह भी सम्भव था कि उन बच्चों मे से कोई एक भी अगर विल गेट पैदा हो जाता तो पाकिस्तान का भाग्य बदल जाता। कौन पता कौन बच्चा महान पूजीपति बन जाय कौन महान वैज्ञानिक बन जाय कौन महान राजनेता बन जाय। एक अकेले डा0 अब्दुल कादिर ने पाकिस्तान को वह मुकाम दिला दिया जो आज किसी भी इस्लामिक देश को हासिल नही है। पता नही किस अब्दुल कादिर की हमने शहादत दे दी। और कब तक हम अपने बच्चों को इस प्रकार मरवाते रहेगे। आवश्यकता है इस पर पुर्नविचार करने की। अगर हम अब भी नही चेते तो बहुत देर हो जायेगी। जो भी परिवार देश या समाज अपने संसाधनों को नष्ट करता है वह समय की दौड मे पीछे छूट जाता है। आज अफगानिस्तान एक जरजर और असफल राष्ट के रूप मे सुमार है जबकि उसके पास दुनियां की सबसे उन्नत नस्ल है। सबसे ज्यादा हृष्ट पुष्ट विपरीत परिस्थितियों मे संर्घष की क्षमता रखने वाले लोग आफगानिस्तान मे हैं। काबुलीवाला आज भी भारतीयों के रगों मे रचा बसा है। काबुल हेरात कन्धार जो प्राचीन काल मे सभ्यता के केन्द्र थे आज कटटरवादी सभ्यता के प्रतीक बन गये हैं। कहां गया हमारा वह उदार मन सब को सम्मोहित कर लेने वाला काबुलीवाला क्या फिर हम लोग उस काबुलीवाला से मिल सकेगे। क्या फिर उसके कर्ण प्रिय शब्द सुनने को मिलेगे। शायद हां। आशा ही जीवन है।
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