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कुछ दिन पहले मै अयोध्या स्थित भगवान नागेश्वर नाथ मंदिर गई। मन्दिर मे कुछ लोग भगवान शंकर जी के पिन्डी पर जल चढा रहे थे कुछ लोग दूध और दही कुछ लोग मधु और कुछ लोग घी चढा रहे थे; साथ ही फूल और पत्ती के रूप मे कनेर और मदार का फूल बेल पत्री और धतूरे का फल भी चढा रहे थे। मै सोचती रही कि इन चढाये जा रहे सामग्री मे क्या संबन्ध है। वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करने पर आप पायेगे कि इन चढाई जा रही बस्तुओं मे एक निश्चित सम्बन्ध है। भगवान शंकर जी के पिन्डी पर चढाये जा रहे जल दूध दही मधु और घी की ताशीर ठंढी होती है। जबकि कनेर और मदार के फूल बेल पत्री और धतूरे का फल का शरीर पर एन्टीजनिक प्रभाव होता है।विज्ञान कहता है कि जब शरीर मे कोई एन्टीजनिक पदार्थ प्रवेश करता है तो उसके सापेक्ष एन्टीबाडीज बनती है जिसके कारण शरीर का तापमान बढ जाता है। शरीर के तापमान बढने पर उसे कम करने के लिये ठण्ढे पदार्थ शरीर पर लगाये या पानी से नहलाएं इस तथ्य का ज्ञान हमारे आयुर्वेदाचार्यों को बहुत पहले था।
एक किवदन्ती के अनुसार एक समय भगवान शिव ने अपने पुत्र भगवान गणेश का सिर काट दिया था। बाद मे माता पार्वती के जिद करने पर उन्होने हाथी के बच्चे के सिर को प्रत्यारोपित कर भगवान गणेश को जीवित किया था। इसे आप क्या कहेगें। वास्तव मे एक प्रकार की न्यूरो सर्जरी थी जिसे भगवान शिव ने किया और गणेश जी को जीवित किया। वास्तव मे आदि काल मे भारतीय विज्ञान बहुत विकसित था। एक आदमी के धड पर हाथी का सिर लगाकर मरे व्यक्ति को जिवित कर देना एक असम्भव कार्य है।एक व्यक्ति जो इस प्रकार का कार्य करेगा उसे भगवान नही कहेगें तो क्या कहेगे। जब समुद्र मंथन हुआ था उस समय निकले विष को भगवान शंकर ने पी लिया था। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने उस विष को गले के नीचे नही जाने दिया। गले के नीचे विष न जाने देने का कारण था कि विष का शोषण आतो द्वारा किया जाता है जब विष पेट मे प्रवेश नही करेगा तो उसका प्रभाव भी शरीर पर नही होगा। लेकिन विष के प्रभाव के कारण शंकर जी का गला नीला पड गया इसलिये भगवान शंकर को नीलकंठ भी कहते हैं। भगवान शिव प्राय: अपनी साधना के लिये कैलास पर्वत पर जाया करते थे। कैलास पर्वत एक ऐसी उची चोटी है जहां गर्मी के दिनो मे भी तापमान काफी नीचा रहता है। जैसा कि हम अवगत है कि जैव प्रयोगशालाओं के लिये कम तापमान तथा कम सूक्ष्म कीटाणुओं की सक्रियता आवश्यक है। मेरा मानना है कि भगवान शंकर ने उचे पर्वत पर अपनी प्रयोगशालाएं स्थापित कर रखी थी जिसमे निभिन्न प्रकार के शोध करते थे शोध के बाद जब भगवान शिव कोई नयी तकनीकी या अस्त्र खोज निकालते थे तब वे कैलास पर्वत से नीचे आते थे उस समय राक्षस और देवताओं को मालूम हो जाता था कि भगवान शंकर कोई न कोई नया अस्त्र या शस्त्र की खोज कर ली है इसलिये राक्षस और देवताओं दोनों भगवान शंकर को खुश करने का प्रयास करते थे। भगवान शंकर की यह विशेषता देखने को मिली कि भगवान शंकर किसी को भी वरदान दे देते थे। उनके लिये न देवता अप्रिय थे और न ही राक्षस। उन्होने देवताओं और दैत्यों को अस्त्र और शस्त्र दिये थे। किसी के प्रति भगवान शंकर का कोई दुराव नही था। भगवान शंकर के त्रिनेत्र का वर्णन मिलता है। भगवान शंकर के माथे पर तीसरा नेत्र दिखाया जाता है। वास्तव मे यह भगवान शंकर का तीसरा नेत्र और कुछ नही था बल्कि भगवान शंकर की बुद्धि और विवेक का परिचायक था। भगवान शंकर द्वारा अपने शरीर मे भभूत लगाई जाती थी। भभूत कार्वनिक पदार्थो को जलाकर बनाया जाता है। कार्वनिक पदार्थो को जलाने के बाद मिनरल पदार्थ ही अवशेष रहते है। इनका शरीर पर प्रयोग कई प्रकार की वीमारियों से निजात दिलाता है। वास्तव भगवान शंकर एक महान वैज्ञानिक थे; उन्होने अपने समय अनेक वैज्ञानिक आविष्कार किया। उनके द्वारा किये गये शोध ऐसे थे जो सामान्य व्यक्ति के समझ के परे था। लोगो ने इसे चमत्कार माना और कहने लगे कि यह कार्य केवल भगवान ही कर सकता है; इसलिये शंकर जी को भगवान मानने लगे।
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