- 48 Posts
- 246 Comments
जब कभी आप किसी बडे शहर मे प्रवेश करें तो बडी बडी होर्डिगं आपका स्वागत करेंगी जिनमें नर्सिंग होम्स की पांच सितारा सुबिधाओं का उल्लेख होगा। इन नर्सिंग होम्स मे ब्रिटेन और अमेरिका के पढें स्पेस्लिस्ट डाक्टर्स का बखान होगा। भगवान न करे कभी अापको इन साहबान से मुखातिब होना पडे लेकिन जिस दिन आपका पाला इन महाशय से पडेगा तो शायद आप इलाज कराना भूल जायेगें। जब आप इन नर्सिंग होम्स से मुक्त होगें तो शायद आप कर्जदारों के गुलाम हो जायेगें।
लेकिन यही सही नही है; अपको सिक्के के दूसरे पहलू भी इसी समाज मे मिल जायेगें। आपने झोला छाप डाक्टर के वारे मे सुना ही होगा। शायद आपको मेरे लेख का यह शीर्षक चकित करे लेकिन आप आश्चर्य मे न पडे;यह एक सही तथ्य है। उत्तर प्रदेश का एक जिला है बदायूं। यह जिला मानव विकास सूचकांकों मे श्रावस्ती के बाद पूरे प्रदेश मे सवसे नीचे है। स्वास्थ्य;स्वच्छता;और शिक्षा मे यह जनपद सवसे नीचे है। जब कभी आपको बदायू आने का मौका मिले तो आप विश्वास नही कर पायेगे कि यह वही जनपद है जिसके वारे मे आप पढा और सुना करते थे। नवम्बर दिसम्बर माह मे दूर दूर तक लहलहाते गेहू के खेत;आलू और गन्ने की फसल देखकर आप सहसा विश्वास नही कर पायेगें कि यह वही जनपद है जिसके वारे मे आप सोचा करते थे। बदायू जनपद अर्न्तराष्टीय वाजार मे मेंथा आयल की कीमते निर्धारित करता है। लेकिन इन सभी के वावजूद जुलाई के महीने मे जब वरसात की शुरूआत होती है तो जनपद मे डायरिया महामारी के रूप मे फैलता है। बडी संख्या मे छोटे छोटे बच्चे डायरिया से पीडित हो जाते है। पीडित बच्चों के परिवार वाले उन्हे गांव के झोलाछाप डाक्टरों के पास ले जाते है ये तथाकथित डाक्टर बच्चों को चारपाई पर लिटाकर चारपाई के पाये मे लाठी बांधकर स्टैंड तैयार करते हैं ओर उस स्टैंड मे ग्लूकोज की बोतल लगाकर बच्चों का उपचार शुरू के देते है। ये तथाकथित डाक्टर जब बच्चों को ठीक कर देते है उसके बाद उनके फीस के भुगतान का नम्बर आता है। लोग बताते है कि जब गरीब लोग बच्चें के उपचार की कीमत देने मे असमर्थ हो जाते है तो ये तथाकथित डाक्टर मरीजों के परिजनों से गेहूं गेहूं के भूसे और उपले फीस के रूप मे लेते है। ये तथाकथित डाक्टर बडे उदार होते है यदि आपके पास पैसे या भूसा या उपला या गेहूं नही है तो ये डाक्टर साहब आपके बही खाते मे अवशेष धनराशि दर्ज कर लेते हैं। ये डाक्टर साहब इतने उदार है जैसे ही इन्हे पता चलता है कि अमुक गांव मे कोई व्यक्ति बीमार है डाक्टर साहब अपनी डिस्पेंसरी लेकर उसके घर पर पहुच जाते है और पीडित का उपचार शुरू कर देते है। इनके पास अमेरिका और ब्रिटेन से प्राप्त कोई डिग्री नही है लेकिन गामीण क्षेत्रों मे आज भी ये तथा कथित डाक्टर चिकित्सा की रीढ हैं। कभी कभी चिकित्सा विभाग इन उदार मन डाक्टरों के खिलाफ अभियान भी चलाता है लेकिन अधूरे मन से क्योंकी वह जानता है कि इन डाक्टरों की अनुपस्थिति मे उनकी उपस्थिति अनिवार्य हो जायेगी। इसलिये स्वास्थ्य विभाग नही चाहता कि ये डाक्टर समाप्त हो। धन्य है भारतवर्ष जहां एक ओर समाज के कुछ लोग अस्पताल मे भी पांच सितारा सुबिधाओं का प्रयोग कर रहे है वही दूसरी ओर समाज का एक बडा वर्ग आज भी लाठी के स्टैंड मे बांधे गये ग्लूकोज के बोतल से इलाज कराने को अभिसप्त है।
Read Comments