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सभ्य समाज का कुरूप चेहरा

यूपी उदय मिशन
यूपी उदय मिशन
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दिनांक 2 अगस्‍त 2010 स्‍थान विकास खण्‍ड कादर चौक की ग्राम पंचायत रमजानपुर; ग्राम की अनुसूचित जाति की बस्‍ती; जिले के जिला पंचायत राज अधिकारी अपने दो साथी; सहायक विकास अधिकारी पंचायत उझानी एवं युनिसेफ के जिला समन्‍वयक मोहम्‍मद सावेज तथा लखनउ से आयी यूनिसेफ की मीडिया प्रभरी सुश्री अंजली सिंह। गांव के एक छप्‍पर की बैठक मे बैठे गांव  की बाल्मिकी जाति की कुछ महिलाओं से बात कर रहे है। वार्ता के दौरान जब जिला पंचायत राज अधिकारी जब लोगों से मानव मल उठाने के कार्य को छोडने के लिये लोगों को समझा रहे थे उसी समय गांव की कुछ बूढी महिलायें श्री चौधरी स र्तक करने लगी कि यदि वे अपने पैत़क पेशे को छोड दे तो उनकी राजी रोटी कैसे चलेगी। उन्‍होने कहा कि वे स्‍वेच्‍छा से इस कार्य को नही करना चाहती लेकिन पेट के कारण उन्‍हे ऐसा करना पडता है। यदि वे यह कार्य छोड दे तो अपने बच्‍चों का पेट नही भर सकती है। अपने बच्‍चों का पेट भरने के लिये उन्‍हे घर घर जाकर मानव मल उठाना पढ रहा है। जब श्री चौधरी मे उपस्थित महिलाओं से कहा कि उन्‍होने तो अपनी जिन्‍दगी जैसे तैसे विता ली अब क्‍या वे चाहती है कि उनके बच्‍चे भी इसी प्रकार की नारकीय जिन्‍दगी जिये तो एक बद्ध महिला ने कहा कि जब वह शदी के बाद गांव आयी थी तो उनकी सासु ससुर से यह कार्य विरासत मे दिया था; जब जिला पंचायत राज अधिकारी ने उस बूढी महिला से पूछा कि क्‍या वे भी अपनी बहू को यह कार्य विरासत मे देना चाहेगी तो उसने कहा कि जरूर। DSCN1474यह पूछे जाने पर कि यदि आपकी बहू ऐसा करने से मना करे तो भी; तो उस महिला ने कहा कि वह ऐसा नही करेगी। बातचीत के दौरान जब एक युवती ने कहा कि जब वह मल को  टोकरी मे भरकर गांव के रास्‍ते से गुजरती है तो लोग रास्‍ता बदल देते। उस महिला के ये शब्‍द उस दष्‍य को जीवन्‍त कर दिये जब मेरे बाबा जी बताया करते थे कि अदि काल मे जब अछूत जाति के लोग गांव के आम रास्‍तो से गुजरते थे तो लोग रास्‍ता बदल लेते थे। पुराने जमाने की वे बाते जो आज के लोगों कों कोरी कल्‍पना लगती थी जनपद बदायू के ग्रामीण इलाको मे आज हकीकत है। लोग कुत्‍तों और बिल्ल्यिों को अपनी कार मे बैठाने को तैयार है लेकिन हाड मांस के बने एक मानव को अपने साथ लेने को तैयार नही है। आज के समाज की यह कैसी विडम्‍बना है कि इक्‍कीसवी सदी मे जानवरों की जिन्‍दगी से बदतर जिन्‍दगी जीने को मजबूर हैं बा‍ल्मिकी समाज के ये लोग। इसे देश और समाज की विडम्‍बना कहे या सभ्‍य समाज का एक कुरूप चेहरा।             

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