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30 सितम्बर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनउ खण्ड पीठ ने राम जन्मभूमि के स्वामित्व पर अपना फैसला सुनाया। फैसले के बाद अलग- अलग लोगों ने इस पर अलग-अलग टिप्पणियां की। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशान्त भूषण ने कहा कि न्यायालय यह निर्णय नही कर सकता कि भगवान राम कहां पैदा हुए थे। न्यायालय का फैसला इस दृष्टि से वैधानिक नही है। सुन्नी वक्फ वोर्ड फैसले से सन्तुष्ट दिखा लेकिन हिन्दू संगठनो द्वारा इसे विजय के रूप मे प्रस्तुत करने के कारण उसने उच्चतम न्यायालय मे अपील करने की घोषणा की। आम जनमानस जो पिछले कई दिनों से विभिन्न आशंकाओं मे डूबा था ने राहत की सांस ली। विभिन्न राजनैतिक दल जिन्होंने इस फैसले से राजनैतिक लाभ की अपेक्षा की थी को निराशा हाथ लगी। कांग्रेस सपा एवं वसपा जो इस फैसले के माध्यम से मुस्लिम मतो को अपने तरफ मोडने का सपना संजोए थे उन्हे निराशा हाथ लगी। उसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी जो हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण की आशा कर रही थी उसे भी इस फैसले से निराशा ही मिली। उत्तर प्रदेश मे जहां मायावती जी इस फसले के बाद होने वाले उपद्रव को सख्ती से कुचल कर एक सख्त प्रशासक के रूप मे अपने को अधिष्ठापित करने का सपना सजोये हुई थी उन्हे भी इस फैसले से कुछ नही मिला। यदि किसी को कुछ मिला तो वह है भारत का अवाम जिसे चिरप्रतीक्षित शान्ति मिली। आज चारों ओर शान्ति है अवाम खुश है कि राजनीतिक नेताओं की दुकानदारी का एक मुददा खत्म हुआ। अब शायद राजनीतिक दल धर्म और जाति से उपर उठकर लोगों की रोजी रोटी को अपनी प्राथमिकता मे सामिल करें।
अयोध्या फैसले के कुछ दूरगामी परिणाम होंगे जिन्हे मै आपको बताती हू:
1- अब राजैनितक दलों की आयोध्या की राजनीति लगभग खत्म हो गई है।
2- जहां राम लला विराजमान है वहां देर सवेर राम मन्दिर का निमार्ण होने का रास्ता साफ हो गया है।
3- इस फैसले से वे राजनीतिक दल जो राम मन्दिर के नाम पर राजनीति किया करते थे या अल्पसंख्यकों के मन मे भय पैदा किया करते थे की राजनीति कमजोर होगी।
4- राजनीतिक दलों को अब रोजी रोटी को अपने राजनैतिक एजेन्डे मे सामिल करना होगा।
5- अल्पसंख्यको का भारतीय सत्ता प्रतिष्ठानों विशेषकर न्यायपालिका मे आस्था बढेगी।
6- हिन्दू और मुसलमानों के बीच की कटुता घटेगी।
7- हिन्दू और मुसलमान दोनों मे सहअस्तित्व का भाव विकसित होगा।
मेरा मानना है कि मुसलिम समुदाय को राम जन्मभूमि पर राम मन्दिर निर्माण मे कोई आपत्ति नही थी। उन्हे आपत्ति इस बात पर थी कि राम मन्दिर निर्माण के बाद यह आन्दोलन केवल राम जन्मभूमि तक सीमित नही रहेगा बल्कि वनारस और मथुरा भी विवाद के घेरे मे आयेगे। एक वार यह प्रक्रिया शुरू हुई तो इसका कोई अन्त नही है। ऐसी स्थिति मे इस पर किसी न किसी दिन विरोध करना ही होगा, इसलिये प्रारम्भ मे ही इसका विरोध क्यों न कर दिया जाय। माननीय न्यायालय द्वारा एक तिहाई भाग सुन्नी वख्फ वोर्ड को देकर न्यायालय ने मन्दिर और मस्जिद के साथ साथ वजूद को स्वीकार कर लिया है इसलिये अब वनारस और मथुरा के भगवान शंकर और श्री कृष्ण मन्दिर के साथ वहां स्थापित मस्जिदे भी वजूद मे रह सकती है। मेरा मानना है कि अव राम जन्मभूमि विवाद के समाधान के बाद वनारस और मथुरा विवाद का भी मामला लगभग समाप्त हो जायेगा।
माननीय न्यायालय का फैसला न्यायिक दृष्किोण से गलत हो सकता है लेकिन देश के हित मे है। भारत मे बहुत दिनों बाद माननीय न्यायाधीशों ने दिमाग के साथ दिल से फैसला दिया है।
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