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किसी गांव में एक गरीब परिवार रहता है। कई दिनों से रोजगार न मिलने के कारण परिवार के लोग भूख से मरने के कगार पर हैं। परिवार की एक स्त्री साहूकार के पास जाती है और परिवार की स्थिति बताते हुए परिवार वालों की जान की भीख मांगते हुए कुछ रुपये कर्ज स्वरूप मांगती है। साहूकार कर्ज देने के बदले उस औरत से एक रात उसके साथ हम बिस्तर होने का प्रस्ताव रखता है। बताईये उस औरत को क्या करना चाहिए। क्या उसे अपनी इज्जत की रक्षा करनी चाहिए या फिर अपने व अपने परिवार के प्राणों की। समाज के ठेकेदारों से पूछे कि उसे क्या करना चाहिए तो वे कहेंगे कि उसे अपनी इज्जत की रक्षा करनी चाहिए भले ही जान चली जाए।
एक बार एक साधु शान्ति की खोज में वन की ओर प्रस्थान कर गये। उन साधु की विदाई समाज के अन्य लोगों द्वारा बडे धूमधाम से मनाई गई। साधु जी जंगल में घूमते घूमते अचानक रास्ता भूल गये और कई दिन जंगल में खाने के लिए भटकते रहे। साधु जी भूख से विहवल हैं। अब उनके पास मौत और जंगली जानवरों को मारकर मांसाहार दो ही रास्ते बचे हैं। बताइये उस साधु को क्या करना चाहिए। क्या उसे भूख से जान दे देनी चाहिए या मांसाहार करके अपने प्राणों की रक्षा करनी चाहिए। समाज के ठेकेदार कहेंगे कि उसे मांसाहार नहीं करना चाहिए भले ही जान चली जाए।
किसी शहर में एक गरीब परिवार रहता है। परिवार गरीबी से तंग है। परिवार का एक बच्चा विगत तीन दिनों से भूखा है। अचानक वह एक रेस्टोरेंट में खाना खा रहे एक दम्पत्ति के पास जाता है और अपनी गरीबी का हवाला देते हुए तीन दिनों से भूखे होने की दुहाई देते हुए खाना मांगता है। दम्पत्ति उसे वहां से भगा देता है। अचानक भूख से तडप रहा बच्चा औरत का पर्स लेकर भागता है। लोग दौडाकर उसे पकड लेते हैं। उसकी पिटाई करते हैा और पुलिस को सौंप देते हैं। बताइये उस बच्चे का यह काम अपराध है या कुछ और। समाज के ठेकेदार कहेंगे कि बच्चे ने कानूनन अपराध किया है और उसे कानून के तहत सजा दी जानी चाहिए।
किसी गांव में एक प्रधानजी रहते हैं। ग्राम प्रधान गांव में सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं के ठेकेदार हैं। गांव के लोगों से पैसे लेकर विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाते हैं। प्रधान जी गांव के अमीर लोगों से पैसा लेकर उनकी फर्जी पेंशन बनवाते हैं, अमीरों को इन्दिरा आवास दिलाते हैं, गरीबों के हक का लाल और सफेद कार्ड अमीरों को दिला देते हैं। सरकार द्वारा ग्राम पंचायत को आवंटित धनराशि खा लेते हैं। इसमें और कुछ नहीं होता बस देखते देखते गरीबों का धैर्य जवाब दे देता है और गांव के गरीब एक दिन अधिकारी के कार्यालय पर पहुंचते हैं। अधिकारी को जब पता चलता है कि गांव के कुछ गरीब एक दिन अधिकारी के कार्यालय पर पहुंचते हैं। अधिकारी को जब पता चलता है कि गावं के कुछ गरीब अपनी समस्या लेकर उनसे मिलना चाहते हैं तो वे व्यस्तता का हवाला देकर कुछ देर बाद मिलने का बहाना करते हैं। घंटों इंतजार के बाद भी अधिकारी साहब गावं वालों से नहीं मिलते हैं। अचानक वही प्रधान जी एक नेता के साथ उसी अधिकारी के कार्यालय पर जा धमकते हैं और बिना किसी अनुमति के कार्यालय में घुस जाते हैं। अधिकारी जी कुर्सी से उठकर नेताजी को प्रणाम करते हैं और सम्मानपूर्वक कुर्सी पर बैठाते हैं और चाय पानी भी पिलवाते हैं। गांव के गरीब और वंचित लोग यह सब देख रहे हैं। अचानक गांव वालों का धैर्य जवाब दे जाता है और वे अधिकारी के कमरे में घुसकर अधिकारी के साथ बदसलूकी करते हैं। जरा यह बतायें कि क्या गरीब भूखी जनता का यह काम अपराध है। कानून के ठेकदार इसे कानून का उल्लंघन मानेंगे और कानून के तहत सजा दिलाने की बात कहेंगे।
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