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विश्व इतिहास का गम्भीरता से अध्ययन करने से यह तथ्य प्रकाश मे आता है कि विश्व के धर्मों मे वर्चस्व को लेकर हमेशा युध्द होता रहा है। वर्तमान मे हिन्दू धर्म सबसे पुराना धर्म है। इसाई धर्म जिसकी उत्पत्ति लगभग 2000 वर्ष पूर्व हुई दूसरा तथा इस्लाम जिसकी उत्पत्ति लगभग 1400 वर्ष पूर्व हुई तीसरा पुराना धर्म है। आबादी के अनुसार क्रिश्चियन जिसकी आबादी विश्व मे लगभग 213.58 करोड है सवसे बडा समूह है। इस्लाम 131.40 करोड आबादी के साथ दूसरे तथा हिन्दू धर्म 87.00 करोड के साथ तीसरे स्थान पर है। इसाई धर्म तथा इस्लाम धर्म ने हमेशा अपना विस्तार धर्म परिवर्तन के माध्यम से किया है। हिन्दू धर्म द्वारा कभी भी धर्म परिवर्तन को बढावा नही दिया गया। इसाई धर्म की उत्पत्ति के साथ अपना विस्तार मध्य एशिया मे किया लेकिन इस्लाम की उत्पत्ति के साथ इस्लाम तथा इसाई धर्मो मे वर्चस्व को लेकर युध्द प्रारम्भ हो गया। इस्लाम धर्म ने सन 623 ई0 मे अपनी उत्पत्ति के 3 वर्षो के भीतर ही जेरुसलम तथा अधिकांश मध्य पूर्व एशिया पर अपना अधिपत्य कर लिया। 999 ई0 मे सम्पूर्ण यूरोप इसाई धर्म मे परिवर्तित हो गया। इस्लाम तथा इसाई धर्मो मे अपने विस्तार को लेकर वर्ष 1095 से 1291 ई0 तक लगभग 196 वर्षो तक धर्म युध्द चलता रहा। अन्त मे इस धर्म युध्द मे इस्लाम विजयी हुआ तथा क्रिश्चियनिटी हारी। इस हार के बाद जहां क्रिश्चियनिटी एक रीजन बेस्ड सोसाइटी के रुप मे विकसित हुई वही इस्लाम के कटटर स्वरुप मे कोई परिवर्तन नही आया। इस्लाम तथा क्रिश्चियनिटी के विस्तार मे तत्कालीन शासको का भी काफी योगदान रहा है। जहां मध्य एशिया मे इस्लाम के विस्तार मे मुगल शासको का बहुत योगदान रहा है। मुगल शासको ने आफगानिस्तान पाकिस्तान तथा भारत मे इस्लाम का विस्तार किया। उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका मे इसाई धर्म का विस्तार यूरोपीय देशो द्वारा उनके औपनवेशिक काल मे धन तथा बाहुबल के सहारे किया गया।
यदि मध्यकाल मे हुए युध्दों का अध्ययन किया जाय तो पता चलता है कि वह सेना जो तकनीकी तौर पर अधिक दक्ष थी उसी ने विजय प्राप्त की। मुगलो तथा राजपूत राजाओं के युध्द मे राजपूतों के हार के प्रमुख कारणों मे उनके द्वारा अपनायी गई युध्द कला थी। मुगल जहां युध्द के दौरान घोंडों का प्रयोग कर रहे थे वही राजपूत शासक अपने युध्द के लिये हाथियों पर निर्भर थे। मुगलों द्वारा तीर कमान तथा बारुद को प्रयोग उन्हे तकनीकी श्रेष्ठता प्रदान कर रही थी। परिणाम स्वरुप राजपूत तथा अन्य भारतीय शासक अधिक वीर होने के वावजूद युध्द भूमि मे पराजित हुए। यही कारण मुगलो का अग्रेजों के विरुध्द हार का रहा है।
वर्तमान मे इसाई तथा इस्लाम धर्म परिवर्तन के माध्यम से अपना विस्तार करना चाह रहे है। इसाईयत जहां धन के बल पर अन्य धर्मो के लोगों को इसाई बनने के लिये प्रेरित कर रही है वही इस्लाम आज भी तलवार के बल पर अपना विस्तार करना चाह रहा है। इस्लाम उन सभी के विरुध्द युध्द छेडे हुए है जो उसके विस्तार मे बाधक है। हिन्दू धर्म जहां इसलाम के विस्तार की सवसे बडी सम्भावना है वही अमेरिका उसके विस्तार मे सवसे बडी बाधा। इसलिये भारत तथा अमेरिका आज इस्लामिक विस्तारवाद के सबसे बडे दुश्मन है। जो लोग यह समझते है कि भारत मे इस्लामिक आतंक का कारण कश्मीर समस्या है वे लोग इस समस्या के वास्तविक स्वरुप का आकलन नही कर पा रहे है। कश्मीर समस्या के समाधान के बाद भी भारत मे इस्लामिक विस्तारवाद की समस्या कायम रहेगी। ऐसा मेरा मानना है क्योकि अमेरिका एवं इस्लामिक विश्व के बीच कश्मीर जैसी कोई समस्या नही है फिर भी अमेरिका को इस्लामिक विस्तारवाद से जूझना पड रहा हैं यही स्थिति चीन की है। अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान की समस्यों की जड मे भी इस्लामिक विस्तारवाद ही है। मेरे इस इस्लामिक की परिभाषा से कई लोग सहमत नही होगे। लेकिन यह एक कटुसत्य है कि अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के वे उदारवादी जों ज्ञान-विज्ञान आधारित समाज का विकास करना चाहते है वे लोग भी इस्लामिक विस्तारवादियों के निशाने पर है। ओसामा विन लादेन जिसे आज हिन्दू तथा इसाई धर्म के अनुयायी आतंकवादी मानते हैं बिनलादेन मोहम्मद साहब के बाद सबसे अधिक स्वीकार किये जाने वाली शकसियत है। जहां तक वर्तमान परिवेश मे इस्लामिक विस्तारवादियों की सफलता का है ऐतिहासिक घटनाक्रम के विस्तारपूर्वक विशलेषण से यह तथ्य आइने की तरह साफ है कि वर्तमान युध्द कला से सफलता प्राप्त करना सम्भव नही है क्योकि दोनो समुदायों द्वारा अपनाई जा रही युध्द कला की तकनीकी मे कोई समानता ही नही है। बम विस्फोट करके आम जन को प्रभावित किया जा सकता है लेकिन इसके द्वारा तंत्र क़ो नष्ट नही किया जा सकता है। किसी स्थापित तंत्र को समाप्त करने के लिये एक आल्टरनेटिब तंत्र जो वर्तमान तंत्र से तकनीकी एवं वैचारिक तौर पर बेहतर हो आवश्यक है। इस्लाम हिन्दू तथा इसाई धार्मिक समुदायों द्वारा अपनाई जा रही वैचारिक तथा तकनीकी मे कोई तुलना ही नही है। इसाईयत तथा हिन्दू समाज तकनीकी तौर पर इस्लामिक समाज से काफी आगे है। इसलिये इस्लामिक विस्तारदारवाद जिसे आतंकवाद का नाम दिया जा रहा वास्तव मे एक वैश्विक समस्या है जिसके सफल होने की सम्भावनये काफी क्षीण है।
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