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जब मै बचपन मे छोटी थी उस समय हमारे गांव मे एक तेल चलता था नूरानी तेल। किसी को किसी प्रकार का दर्द हुआ नूरानी तेल लगाया चंगे हो गये। आज जब मै टेलीविजन खोलती हूं तो टीम अन्ना का कोई न कोई सदस्य किसी न किसी मुददे पर बहस करता दिख जाता है; चाहे वह लोकपाल का मुददा हो; चाहे छवि राणावत के प्रशासनिक तन्त्र से परेशान होने की बात हो या सेना का विवाद हो। टेलीविजन वाले भी लगता है बडी बहस के नाम पर औपचारिकता करते हैं; क्योंकि जब किसी मुददे पर कोई बहस हो रही होगी वही चार चेहरे बहस के लिये हाजिर हैं।
टीम अन्ना अपने को सबसे विद्वान मानती है पर इस फर्क को नही समझ पाई कि लोकपाल आन्दोलन और भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन दोनो मे फर्क है। अगस्त 2011 मे रामलीला मैदान मे जो भीड एकत्र हुई थी वह केवल लोकपाल विल के पक्ष मे नही थी बल्कि भ्रष्टा चार के विरूद्ध थी। टीम अन्ना के लोगों का अहंकार; उनका लगातार टेलीविजन से चिपके रहना; अपना व्यक्तिगत कद उचा उठाने का प्रयास करना; अपनी नाकामियों पर ईमानदारी से मंथन न करना और छोटे छोटे लक्ष्य; न तय करना भी इनके प्रयासों को परवान नही चढने दे रहे हैं। हर मुददे पर बयानबाजी से कई विवाद खडे हुए; कई वार लोग कहते है कि यह मेरे व्य क्तिगत विचार हैं; हो सकता है कि वे आपके व्यगक्तिगत विचार हो लेकिन जब आप एक असामान्य व्यक्ति हो गये हों और आपकी बातों को संज्ञान मे लिया जा रहा हो तब आपका कोई विचार व्यगक्तिगत नही रह जाता है।
जब मै छोटी थी राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री थे। उस समय एक जुमला आम चर्चा का विषय था; हमने देखा हम देखेंगे; उस समय सरकारी टेलीविजन दूरदर्शन एक मात्र चैनल था आपने टेलीविजन खोला नही कि हमने देखा हम देखेंगे बजना शुरू हो जाता था। लोगों मे इसको लेकर इस कदर चिढ हो गई लोग टी0वी0 बन्द कर दिया करते थें। राजीव गांधी जी एक नेक इंसान थे लेकिन इस अत्यधिक प्रचार ने उनके चेहरे का आकर्षण गवां दिया। टीम अन्ना के अत्याधिक प्रचार प्रसार के कारण उनका आकर्षण खत्म हो रहा है। टीम अन्ना हर समस्या का इन्टें ट समाधान लोगों के सामने प्रस्तुत कर देती है; उसे अपने आप विचार नही करने देती।
आज भ्रष्टाचार समाज मे कैंसर की तरह व्याप्त हो गया है। कैंसर का इलाज रेडियोथिरेपी नही है। यदि आपका छोटा बच्चा कैसर ग्रस्त है तो मै समझती हू कि रेडियोथरेपी के बजाय उसे मर जाने देने मे ही भलाई है। आवश्य कता है नये बच्चे को पैदाकर अच्छे परवरिस की। यदि आप कैंसर ग्रस्त बच्चे को बचाने का प्रयास करते है तो बच्चा तो नही बचेगा हां आप दिवालिया जरूर हो जायेगे। आज सरकारी तंत्र कैंसर ग्रस्त हो गया है उसे रेडियोथिरेपी से नही सुधारा जा सकता है आवश्यकता है नये तंत्र की। नया तंत्र कैसा होगा इस पर विचार करे; लोकपाल या लोकायुक्त फौरी राहत दे सकते हैं लेकिन स्थाई समाधान नही हैं।
आप लोग एक सही उददेश्य के लिये प्रयास कर रहे है लेकिन आपको अपनी रणनीति पर पुर्नविचार करना होगा।
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