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संक्रमणकाल से गुजरती भारतीय राजनीति

यूपी उदय मिशन
यूपी उदय मिशन
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जब देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने का अभियान चलाया जा रहा था उस समय किसी ने सपने मे भी नही सोचा होगा कि भारतीय लोकतंत्र अपने पराभव के उस कगार पर पहुच जायेगा जहां लोग 100; 200 और 500 रूपये मे अपना मत बेच देंगे। लेकिन यह सच है। सामान्यत: जब इस विषय पर बत चलती है तो कोई राजनीतिज्ञों को दोष देता है तो कोई जनता को। लेकिन वास्त विक समस्या क्या है उस पर कोई गौर नही करता। जब देश स्वबतंत्र हुआ एस समय देश को आजाद कराने वाले नेतागणों को देश से प्रेम था । लोगों मे देश के विकास के लिये जजबा था लेकिन समय के साथ यह जजबा कम होता गया। सत्ता  मे बने रहने के लिये सत्ताबधारी पार्टी ने अपराधियों की सहायता लेना शुरू कर दिया। लेकिन समय के साथ अपराधी न केवल राजनीतिज्ञों की सहायता करना शुरू किये बल्कि समय के साथ राजनीति मे प्रवेश कर गये। एक समय ऐसा था जब राजनीतिज्ञ एवं अपराधियों के बीच फर्क करना मुश्किल हो गया था लेकिन समय के साथ अपराधियों की समाज मे स्वीकरिता समाप्त हो गई। आज कोई अपराधी अगर राजनीति मे है तो उसे अपना चाल और चरित्र बदलना पडा है। लेकिन समय के साथ एक नया दौर आ गया है। आज देश की राजनीति मे पैसों का प्रभाव बढ रहा है। वोट ही नही राज्य  सभा और विधान परिषद की सीटे भी  बेची और खरीदी ज रही है। यह आरोप किसी एक पार्टी के विरूद्ध नही बल्कि सभी पार्टियों पर लग रहा है। पुराने राजनीतिक लोग जब अपराधियों को राजनीति मे लायें उस समय उन्हो ने सपने मे भी नही सोचा था कि एक दिन ये अपराधी ही राजनीति करने लगेंगे; लेकिन पुराने राजनीतिज्ञ आज राजनीति से वाहर हो गये हैं। ठीक वही इतिहास दोहराया जा रहा है। वे राज नेता जिन्होंने राजनीति मे पैसे का चलन शुरू किया है समय के साथ वे भी राजनीति से बाहर हो जायेगें। इन लोगों को शायद मालूम नही है। आज भी राजनीतिज्ञों के पास इतना पैसा नही है कि वे आम पूजीपतियों से मुकाबला कर सकें। पैसे के दौर से देश की राजनीति को निकलने मे हो सकता है 20 साल लगें हो सकता है 30 साल लगें। लेकिन यह दौर भी गुजर जायेगा। इसमे बुद्धिजीवियों को पहल करनी होगी।
प्रश्न उठता है कि है आम जनता अपना मत चन्द रूपयों पर क्योंन बेच देती है। इसका सीधा जबाब है राजनीतिज्ञों ने अपनी साख और विश्सनीयता खो दी है। जनता को मालूम है कि एक वार वोट पड जाने के वाद कोई उनकी खोज खबर लेने नही आयेगा।इस लिये जो मिल रहा है ले लो। आवश्यकता है राजनीतिज्ञों को अपनी साख और विश्वसनीयता बनाने की। समय के साथ यह भी हो जायेगा। जब तक देश पूरी तरह अराजकता के गर्त मे नही चला जाता है। इस प्रक्रिया मे बदलाव सम्भव नही है। जब अपना वश न चले तो उसे समय के उपर छोडना ही श्रेयस्कर है।
जय हिन्द

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