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जनप्रतिनिधियों के भ्रष्ट आचरण के लिये जिम्मेदार कौन ॽ

यूपी उदय मिशन
यूपी उदय मिशन
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सिविल सोसाइटी द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किये गये अभियान के बाद इस बात को लेकर बहस छिड गई है कि राजनेता और नौकरशाही भ्रष्ट है। लेकिन किसी ने इस बात पर गौर करने की कोशिश नही की, कि आखिर भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार कौन हैॽ जब मै बहुत छोटी थी उस समय मेरे बाबा जी कहा करते थे कि फला ग्राम सेवक घूस लेता है फला पटवारी घूस लेता है फला सिपाही घूस लेता है लेकिन उन्हो ने कभी नही कहा कि कोई डिप्टी कलेक्टर या उससे बडा अधिकारी घूस लेता है। उस समय यदि किसी पर घूस लेने का आरोप लग जाता था तो उसकी समाज मे इज्जत चली जाती थी। आज क्या हैॽ प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप है। लोग बडी निर्लज्जता से कहता है कि अभी मामला न्यायालय मे लम्बित है जब तक फैसला नही आ जाता आप कैसे कह सकते हैं कि मै दोषी हूं। आज भ्रष्टाचार पर कोई सामाजिक नियंत्रण नही है। जिस समाज से अपेक्षा थी कि वह भ्रष्ट लोगो का वहिष्कार करेगा, वही इसे सहर्ष स्वी्कार कर रहा है। आज जब कोई बाप अपने बेटी के लिये वर ढूढने जाता है तो यह बताने पर कि लडका सराकारी सेवा मे है और 25000 रूपये वेतन पा रहा है तो लडकी का बाप बडी निर्लज्जता से पूछता कि उपर की कमाई कितनी हैॽ जिस समाज मे एक बाप अपनी बेटी के लिये भ्रष्ट वर ढूढता हो, उस समाज से भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता हैॽ
अगस्त माह मे जब रामलीला मैदान मे आन्दो‍लन शुरू हुआ था उस समय देश मे सभी लोग चाहे वे भ्रष्टाचारी रहे हों चाहे सदाचारी सभी आन्दोलन से जुड गये थे। इससे विदित होता है कि सभी लोगों के मन मे कही न कही भ्रष्टाचार के प्रति गुस्सा है लेकिन जब उनका वश नही चलता है तो वे उसके साथ समझौता करने मे ही भलाई समझते है।लेकिन आज उनके हाथ निराशा लगी। भ्रष्टाचार एक सामाजिक बुराई है इसे केवल कानून से ठीक नही किया जा सकता है। इसके लिये आवश्यक है कि समाज मे भ्रष्टाचार की स्वीकारिता को समाप्त  किया जाय।
जहां तक सांसदो और विधायको के भ्रष्‍ट होने का सवाल है इसके लिये केवल वे ही जिम्मेदार नही हैं। आज अगर कोई राजनेता चाहे वह कितना विद्वान क्यों न हो, कितना ईमानदार क्यों न हो अगर उसके पास दिखावा नही है समाज उसे स्वीकार नही करता। अगर उसे चुनाव मे सफल होना है तो उसे अपने विपक्षी से ज्यादा सक्षम दिखाना होगा। अब प्रश्न उठता है कि अगर आपको अपने विपक्षी से ज्यादा सक्षम दिखाना है तो आपको वे सभी साधन जुटाने है जो विपक्षी के पास है चाहे आप अपने आप सक्षम हो या न हों। फिर शुरू हो जाता भ्रष्टाचार का नंगा नाच। आज अगर भ्रष्ट सांसद सदन मे है तो उसके लिये कौन जिम्मेादार हैॽ किसने उन्हे  चुना हैॽ जब चुनाव का समय आता है तो जनता भूल जाती है कि कौन क्या‍ हैॽ रह जाता है तो केवल यह कि कौन कितना पैसा बांटता है जब जनता पैसे पर वोट बेच रही है तो सदन मे कैसे सांसद जायेगें आप स्वयं कल्पना करें। जो उम्मीगदवार सदाचार की बात करेगा वह जीवन भर चुनाव नही जीत पायेगा। जो पार्टी सदाचार की बात करेगी वह कभी सत्ता  मे नही आ पायेगी। क्या इस विसंगति के लिये राजनीतिक लोग ही जिम्मेदार हैॽ क्‍या अवाम उससे कम जिम्मेदार हैॽ
रही बात संसद और टीम अन्ना के बीच विवाद का तो यह कोई मुददा ही नही है। जिस बात को लेकर संसद मे अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई वह विषय इतना गम्भीर नही था कि सदन उस पर बहस करता। इससे भी गम्भीर मुददे सदन के समक्ष विचार के लिये पडे है उस पर विचार किया जाना चाहिए था। टीम अन्ना जानती है कि राजनीतिक लोग किन मुददो पर शोर मचायेंगे वे उसी मुददे को उठाते हैं जिससे चर्चा मे बने रहे। टीम अन्ना का उददेश्यी भ्रष्टाचार के विरूद्ध अभियान चलाना कम सस्ती लोकप्रियता प्राप्त् करना ज्यादा है। टीम अन्ना के लोग भ्रष्टा्चार के विरूद्ध कोई सामाजिक आन्दोलन क्यों नही शुरू करतेॽ समाज की इस कुरीति पर सामाजिक आन्दो लन के माध्यम से नियंत्रण किया जा सकता है, केवल कानून से नही। संसद को भी विना मतलब की वातो को तूल देकर टीम अन्नान को महत्‍वपूर्ण नही बनाना चाहिये।
रही बात संसद के विशेषाधिकार की तो उसका प्रयोग करने की क्षमता संसद मे है ही नही। वह अपराधी जो संसद पर हमला करने का मास्टंर माइन्ड था तथा जिसे न्यायालय द्वारा फासी की सजा दी जा चुकी है उसके फासी को कार्य रूप नही दिया जा सका है। संसद पर हमला करने वालों ने क्या संसद के विशेषाधिकार का हनन नही किया था लेकिन उसके बचाव मे विधान सभाये प्रस्ताव पारित कर रही है वह संसद का विशेषाधिकार का उलंघन नही है। भ्रष्ट सांसदो को भ्रष्ट कह देना संसद की अवमाना है। अगर यही संसद की अवमानना है तो सबसे पहले ये सांसद ही अवमानना के दोषी है जो चुनाव प्रचार के दौरान कई चुने हुए सांसदो के विरूद्ध भ्रष्टाटचार एंव आपराधिक कत्य का आरोप लगाते है।
प्रकति का नियम है वह तंत्र जो अपनी उपयोगिता नही सिद्ध कर पाता है समय के साथ नष्ट हो जाता है। अगर संसद अपनी उपयोगिता सिद्ध करने मे विफल रही तो जिसकी अवमानना आज टीम अन्ना ने किया है कल को कोई और करेगा किस किस का मुह बन्द करेगी संसद । अब तो यह शुरू हो गया है आगे आगे देखिये होता है क्याॽ

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