- 48 Posts
- 246 Comments
आज संसद मार्ग पर समाजसेवी अन्ना हजारे और योग गुरू बाबा रामदेव एक मंच पर आये। दोनों के एक मंच की आने पर मीडिया मे काफी चर्चा रही। विगत लगभग एक वर्ष से दोनो अलग अलग भ्रष्टाचार और काले धन पर आन्दोलन चला रहे थे। लेकिन दोनो अलग अलग प्रयास कर रहे थे। आज दोनो एक पंच पर आ गये। इस घटना को मीडिया ने एक वडी चर्चा का विषय बनाया। इस चर्चा मे कई पहलू पर प्रकाश डाला गया। लेकिन एक पहलू जिसको ज्यादा महत्व नही दिया गया वह था दोनो समूहो की राजनैतिक महात्वाकांक्षा। बाबा राम देव और टीम अन्ना के कई सदस्य राजनैतिक महात्वाकांक्षा पाले हुए हैं। इन लोगों का अन्तिम लक्ष्य भारत सरकार और अन्य पाटियों की विश्वसनीयता खत्म करना है। भारतीय जनता पार्टी जो मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका मे है वह भारतीय राष्टीय कांग्रेस रिक्त किये गये स्थान की भर पाई कर सकती थी लेकिन अत्यधिक महात्वाकांक्षा के कारण भारतीय राजनीति मे एक शून्य पैदा हो रहा है। आज की राजनैतिक शून्य का फायदा गैर राजनैतिक लोग लेना चाह रहे है। आज टीम अन्ना के लोग एक दूसरे पर राजनैतिक महात्वाकांक्षा का आरोप लगा रहे है। टीम अन्ना के कम से कम दो सदस्य अरविन्द केजरीवाल और किरन बेदी मे राजनैतिक महात्वाकांक्षा स्पष्ट झलकती थी। मेरा अनुमान है कि अरविन्द केजरीवाल और किरन बेदी अन्ना हजारें को प्रयोग करना चाह रही थी और इनका प्रयोग कर अपने आप को स्थापित करना चाह रहे थे। इस काम मे ये लोग आंशिक तौर पर ही सही सफल रहे लेकिन अन्ना हजारे और बाबा राम देव के एक मंच पर आने से अब टीम अन्ना के लोगों का महत्व घटेगा। इस कारण ये लोग निराश होगे। निराशा का परिणाम कुछ समय मे आगे देखने को मिलेगा। आज अरविन्द केजरीवाल का मंच छोडकर जाना अरविन्द केजरीवाल और बाबा रामदेव मे मतभेद का प्रदर्शन यह बताता है कि आने वाला समय बहुत अच्छा नही है। मेरा मानना है कि दोनो आन्दोलनों का उददेश्य ही गलत है। दोनो जो दिखा रहे है वह वास्तव मे है ही नही।
इन लोगों को भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए। भारत के आन्दोलन के समय इलेक्टानिक मीडिया नही था लेकिन लोग स्वत: आन्दोलन मे कूदे। आन्दोलन सौ साल चला काभी दो कदम आगे कभी दो कदम पीछे छोटे छोटे लक्ष्य तय किये गये। परिणाम रहा देश स्वतंत्र हुआ। आज क्या हो रहा है। देश की पूर्ण आजादी का लक्ष्य तय कर लिया गया। लेगे तो पूरी आजादी नही तो कुछ नही। परिणाम एक वर्ष मे कुछ नही मिला। न लोकपाल न काला धन। अगस्त मे सरकार दवाव मे थी उस समय अगर कुछ पा गये होते तो लोगों मे कुछ पाने की संतुष्टि होती लेकिन एक वर्ष मे क्या मिला कुछ नही। उस समय अगर केवल सासंद निधि और विधायक निधि ही खत्म करा ले गये होते तो भी कुछ सन्तोष मिलता। लेकिन नही लेगें तो पूरा लेगे नही तो कुछ नही लेगे परिणाम सामने कुछ नही मिला। मुम्बई आन्दोलन फलाप हो गया। बाबा राम देव एक भीड जुटाने वाले चमत्कारिक पुरूष है लेकिन शायद भूल गये मेरे चुनाव के दौरान नितिन गडकरी जी और सुशील मोदी जी की जन सभा मे जो भीड जुटी थी शायद आज की सभा मे उतनी भीड नही थी लेकिन हुआ क्या 11000 वोट भी नही मिले। जनता के मिजाज को समझना आसान नही है। एक महात्मा जो हनुमान गढी के गददी पर बैठा है उसका धार्मिक नेता के रूप मे स्वीकारिता है। हनुमान गढी मे आने वाला हर आम और खास उसका पैर छूता है लेकिन जब वही धार्मिक नेता राजनीति मे वोट मांगता है तो उसकी जमानत जप्त हो जाती है। बाबा राम देव और टीम अन्ना के लोग जो राजनैतिक महात्वाकंक्षा रखते है समय रहते राजनीति मे आ जाये नही तो समय बीत जाने के बाद जमानत नही बचेगी। दोनो लोग जिस प्रकार राजनैतिक संस्थाओं को महत्वहीन कर रहे है उससे किसी राजनेता का नुकसान होगा कि नही यह तो समय बतायेगा लेकिन देश को बहुत नुकसान होगा। राजनैतिक महात्वाकांक्षा पाले इन लोगों से भ्रष्टाचार के विरूद्ध कोई बडी सफलता मिलेगी इसकी उम्मीद करना बेकार है।
Read Comments